जापान में हर साल लगभग 1500 भुकंम्प आते है मतलब कि हर दिन चार.
मुसलमानों को “नागरिकता” न देने वाला जापान अकेला राष्ट्र है। यहाँ तक कि मुसलमानों को जापान में किराए पर मकान भी नहीं मिलता।
जापान,के किसी विश्वविद्यालय में अरबी या अन्य कोई इस्लामी भाषा नहीं सिखाई जाती।
कुत्ता पालने वाला प्रत्येक जापानी नागरिक उसे घुमाते समय अपने साथ एक विशेष बैग रखता है, जिसमें वह उसका मल एकत्रित कर लेता है।
जापान में 10 साल की उम्र होने तक बच्चों को कोई परीक्षा नहीं देनी पड़ती।
जापान में बच्चे और अध्यापक एक साथ मिलकर Classroom को साफ करते है।
जापान के लोगो की औसत आयु दुनिया में सबसे ज्यादा है (82 साल). जापान में 100 साल से ज्यादा उम्र के 50,000 लोग है।
जापान के पास किसी प्रकार के प्राकृतिक संसाधन नहीं है और वे प्रतिवर्ष सैंकड़ों भूकंप भी झेलते हैं, किन्तु उसके बाद भी जापान दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है।
“Sumo” जापान की सबसे लोकप्रिय खेल है. इसके इलावा बेसबाल भी काफी लोकप्रिय है.
जापान में सबसे ज्यादा लोग पढ़े लिखे है . जहां साक्षरता दर 100% है. जहां अखबारों और न्युज चैनलों में भारत की तरह दुर्घटना, राजनीति, वाद-विवाद, फिल्मी मसालो आदि पर खबरे नही छपती. यहां पर अखबारों में आधुनिक जानकारी और आवश्क खबरें ही छपती है.
जापान में जो किताबें प्रकाशित होती हैं उन में से 20% Comic Books होती हैं.
जापान में 1 जनवरी को नववर्ष का स्वागत मंदिर में 108 घंटियाँ बजा कर किया जाता है।
जापानी समय के बहुत पक्के है यहां तो ट्रेने भी ज्यादा से ज्यादा 18 सैकेंड लेट होती है।
“Vending Machine” वह मशीन होती है जिसमें सिक्का डालने से कोई चीज आदि निकल आती है जेसे कि noodles, अंडे, केले आदि. जब आप जापान में होगे तो इन मशीनों को हर जगह पाएँगे. यह हर सड़क पर होती है. जापान में लगभग 55 लाख वेंडिंग मशीन है।
एक पुरानी सी इमारत में वैद्यजी का मकान था। पिछले हिस्से में रहते थे और अगले हिस्से में दवाख़ाना खोल रखा था। उनकी पत्नी की आदत थी कि दवाख़ाना खोलने से पहले उस दिन के लिए आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी। वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान का नाम लेते फिर वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होतीं, उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। वैद्यजी कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे। कोई देता था, कोई नहीं देता था किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे, उसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो। एक दिन वैद्यजी ने दवाख़ाना खोला। गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके पैसे का हिसाब लगाने के लिए आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आँखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए किन्त...
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