शिंदर कल क्यों नहीं आई?’’
‘‘ जी, कल मेरी माँ बहुत बीमार थी।’’
‘‘क्यों क्या हुआ तेरी माँ को?’’
‘‘जी, उसकी न बगल के नीचे की नस भरती है। कल मानसा दिखाने जाना था।’’
‘‘दिखा आए फिर?’’
‘‘नहीं जी!’’
‘‘क्यों?’’
‘‘जी, कल पैसे नहीं मिले।’’
‘‘फिर?’’
‘‘जी, आज लेकर जाएगा मेरा बापू।’’
‘‘आज कहाँ से आ गए पैसे?’’
‘‘जी, जमींदारों के से लाया है उधारे।’’
‘‘पहली कक्षा में पढ़ रही शिंदर अपने अध्यापक से सयानों की तरह बातें करती।
साँवला रंग मगर सुंदर नैन–नक्श, अपनी उमर के
बच्चों से समझदारी में दो–तीन वर्ष बड़ी। उसकी माँ ने स्वयं तंगी भोग छोटी स्कूल बैठाई ताकि चार अक्षर सीख जाए।
अगले दिन वह एक घंटा देर से स्कूल पहुँची!
‘‘लेट हो गई आज?’’ अध्यापक ने पूछा।
‘‘जी, आज माँ फिर ज्यादा तकलीफ में थी.....रोटियाँ पका कर आई हूँ....और पहले–सारा घर सँभाला...। अध्यापक उसके मुख की ओर देखता रहा,
‘‘तू रोटियाँ पका लेती है?’’
‘‘हाँ जी,सब्जी भी बना लेती हूँ...मेरी माँ लेटी–लेटी बताती रहती है, मैं बनाती रहती हूँ।’’
लड़की के चेहरे से आत्मविश्वास झलक रहा था।
‘‘आज तेरी माँ ने तुझे घर रहने को नहीं कहा?’’ अध्यापक का मत था कि उसे छुट्टी दे दे।
‘‘न जी!....आज तो माँ मेरे बापू को कह रही थी, अगर मैं मर गई तो शिंदर को पढ़ने से न हटाना।’’
कक्षा में चालीस–पचास बच्चों के बावजूद अध्यापक के भीतर एक खामोशी छा गई।
एक पुरानी सी इमारत में वैद्यजी का मकान था। पिछले हिस्से में रहते थे और अगले हिस्से में दवाख़ाना खोल रखा था। उनकी पत्नी की आदत थी कि दवाख़ाना खोलने से पहले उस दिन के लिए आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी। वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान का नाम लेते फिर वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होतीं, उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। वैद्यजी कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे। कोई देता था, कोई नहीं देता था किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे, उसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो। एक दिन वैद्यजी ने दवाख़ाना खोला। गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके पैसे का हिसाब लगाने के लिए आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आँखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए किन्त...
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