"मेरी जेब से पर्स कही गिर गया है,
बस मुझे हावड़ा से धनबाद पहुंचने तक के पैसे दे दीजिये।
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टिकट 105 रूपये का है। और आगे धनबाद रेलवे स्टेशन से मैं पैदल अपने घर
चला जाऊंगा। बस 105 रूपये चाहिये।
वैसे मै बहुत संपन्न परिवार से हूँ। मुझे मांगते हुए झिझक महसूस हो रही
है।"
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मैं-
"इसमे शर्माने वाली कोई बात नहीं है।
कभी मेरे साथ भी ऐसा हो सकता हैl
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ये लो मेरा फोन,
अपने घर वालो से बात करो,
कहो कि मेरे इस नबंर पर 200 रूपये का
रिचार्ज करवा दें और तुम मुझसे 200 रूपये नकद ले लो।
तुम्हारी परेशानी खत्म।"
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वो व्यक्ति बिना कुछ बोले आगे बढ गया।
अरे यार हम भावुक जरूर हाेते हैं मगर बेवकुफ नहीं।।।
एक पुरानी सी इमारत में वैद्यजी का मकान था। पिछले हिस्से में रहते थे और अगले हिस्से में दवाख़ाना खोल रखा था। उनकी पत्नी की आदत थी कि दवाख़ाना खोलने से पहले उस दिन के लिए आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी। वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान का नाम लेते फिर वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होतीं, उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। वैद्यजी कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे। कोई देता था, कोई नहीं देता था किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे, उसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो। एक दिन वैद्यजी ने दवाख़ाना खोला। गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके पैसे का हिसाब लगाने के लिए आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आँखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए किन्त...
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