"युवा समाज सुधारक संघ"
🇮🇳30 Facts about our National Flag
(Tiranga) in Hindi🇮🇳
🇮🇳1. क्या आप जानते हैं कि देश में ‘फ्लैग कोड ऑफ
इंडिया’ (भारतीय ध्वज संहिता) नाम का एक
कानून है, जिसमें तिरंगे को फहराने के कुछ नियम-कायदे
निर्धारित किए गए हैं।
🇮🇳2. यदि कोई शख्स ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया’ के तहत गलत
तरीके से तिरंगा फहराने का दोषी पाया
जाता है तो उसे जेल भी हो सकती
है। इसकी अवधि तीन साल तक
बढ़ाई जा सकती है या जुर्माना लगाया जा सकता
है या दोनों भी हो सकते हैं।
🇮🇳3. तिरंगा हमेशा कॉटन, सिल्क या फिर खादी का
ही होना चाहिए। प्लास्टिक का झंडा बनाने
की मनाही है।
🇮🇳4. किसी भी स्तिथि में फटे या
क्षतिग्रस्त झंडे को नहीं फहराया जा सकता
है।
🇮🇳5. तिरंगे का निर्माण हमेशा रेक्टेंगल शेप में ही
होगा। जिसका अनुपात 3 : 2 ही होना चाहिए।
🇮🇳6. झंडे का यूज़ किसी भी प्रकार के
यूनिफॉर्म या सजावट के सामान में नहीं हो
सकता।
🇮🇳7. झंडे पर कुछ भी बनाना या लिखना
गैरकानूनी है।
🇮🇳8. किसी भी गाड़ी के
पीछे, बोट या प्लेन में तिरंगा यूज़
नहीं किया जा सकता है। इसका प्रयोग
किसी बिल्डिंग को ढकने में भी
नहीं किया जा सकता है।
🇮🇳9. किसी भी स्तिथि में झंडा (तिरंगा)
जमीन पर टच नहीं होना चाहिए।
🇮🇳10. जब झंडा फट जाए या मैला हो जाए तो उसे एकांत में पूरा
नष्ट किया जाए।
🇮🇳11. झंडा केवल राष्ट्रीय शोक के अवसर पर
ही आधा झुका रहता है।
🇮🇳12. किसी भी दूसरे झंडे को
राष्ट्रीय झंडे से ऊंचा या ऊपर नहीं
लगा सकते और न ही बराबर रख सकते है।
🇮🇳13. जब तिरंगा फट जाए या रंग उड़ जाए तो इसे फहराया
नहीं जा सकता। ऐसा करना राष्ट्रध्वज का
अपमान करने वाला अपराध माना जाता है।
🇮🇳14. जब तिरंगा फट जाता है तब इसे गोपनीय
तरीके से सम्मान के साथ जला दिया जाता है या
पवित्र नदी में जल समाधि दे दी
जाती है।
🇮🇳15. शहीदों के पार्थिव शरीर से
उतारे गए झंडे को भी गोपनीय
तरीके से सम्मान के साथ जला दिया जाता है या
नदी में जल समाधि दी
जाती है।
🇮🇳16. सबसे पहले लाल, पीले व हरे रंग
की हॉरिजॉन्टल पट्टियों पर बने झंडे को 7
अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक
(ग्रीन पार्क), कोलकाता में फहराया गया था।
🇮🇳17. भारत के राष्ट्रीय ध्वज को
पिंगली वैंकेया ने डिज़ाइन किया था।
🇮🇳18. अभी जो तिरंगा फहराया जाता है उसे 22
जुलाई 1947 को अपनाया गया था। इससे पहले इसमें 6 बार
बदलाव किया गया था।
🇮🇳19. 3 हिस्से से बने झंडे में सबसे ऊपर केसरिया,
बीच में सफ़ेद और नीचे हरे रंग
की एक बराबर पट्टियां होती है।
झंडे की चौड़ाई और लंबाई का अनुपात 2 और 3
का होता है।
🇮🇳21. सफ़ेद पट्टी के बीच में गहरे
नीले रंग का एक चक्र होता है। इसका व्यास
लगभग सफ़ेद पट्टी की चौड़ाई के
बराबर होता है और इसमें 24 तिलियां बनी
होती हैं।
🇮🇳22. 22 जुलाई 1947 से पहले तिरंगे के बीच
में चक्र की जगह पर चरखा होता था। इस
झंडे को 1931 में अपनाया गया था।
🇮🇳23. 26 जनवरी 2002 को भारतीय
ध्वज संहिता में एमेंडमेंट किया गया। इसके बाद लोगों को
अपने घरों और ऑफिस में आम दिनों में तिरंगा फहराने
की अनुमति मिल गई।
🇮🇳24. झारखंड की राजधानी
रांची में 23 जनवरी 2016 को सबसे
ऊंचा तिरंगा फहराया गया। 66*99 साइज के इस तिरंगे को
जमीन से 493 फ़ीट ऊँचाई पर
फहराया गया।
🇮🇳25. राष्ट्रपति भवन के म्यूज़ियम में एक छोटा तिरंगा रखा
हुआ है, जिसे सोने के स्तंभ पर हीरे-
जवाहरातों से जड़ कर बनाया गया है।
🇮🇳26. भारत में बैंगलुरू से 420 किमी स्थित
”’हुबली”’ एक मात्र लाइसेंस प्राप्त संस्थान
है जो झंडा बनाने का और सप्लाई करने का काम करता है।
🇮🇳27. 29 मई 1953 में भारत का राष्ट्रीय ध्वज
तिरंगा सबसे ऊंची पर्वत की
चोटी माउंट एवरेस्ट पर यूनियन जैक तथा
नेपाली राष्ट्रीय ध्वज के साथ
फहराता नजर आया था इस समय शेरपा तेनजिंग और एडमंड
माउंट हिलेरी ने एवरेस्ट फतह की
थी।
🇮🇳28. पहली बार 21 अप्रैल 1996 के दिन
स्क्वाड्रन लीडर संजय थापर ने तिरंगे
की शान बढाते हुए एम. आई.-8 हेलिकॉप्टर
से 10000 फीट की ऊंचाई से
कूदकर देश के झंडे को उत्तरी ध्रुव में फहराया
था।
🇮🇳29. 1984 में विंग कमांडर राकेश शर्मा ने
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को लेकर
अंतरिक्ष के लिए पहली उड़ान भरी
थी।
🇮🇳30. दिसंबर 2014 से चेन्नई में 50,000 स्वयंसेवकों द्वारा
मानव झंडा बनाने का विश्व रिकॉर्ड भी
भारतीयों के पास ही है
🇮🇳🇮🇳
एक पुरानी सी इमारत में वैद्यजी का मकान था। पिछले हिस्से में रहते थे और अगले हिस्से में दवाख़ाना खोल रखा था। उनकी पत्नी की आदत थी कि दवाख़ाना खोलने से पहले उस दिन के लिए आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी। वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान का नाम लेते फिर वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होतीं, उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। वैद्यजी कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे। कोई देता था, कोई नहीं देता था किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे, उसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो। एक दिन वैद्यजी ने दवाख़ाना खोला। गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके पैसे का हिसाब लगाने के लिए आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आँखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए किन्त...
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