जब तक Parents , अपने बच्चों में उनके अध्यापकों के प्रति श्रद्धा सम्मान का बीज नहीं डालेंगे तब तक बच्चों में अध्ययन के प्रति और विद्यालय के प्रति भी सम्मान का भाव नहीं पनपेगा ,,
परिणामत: ऐसे छाञ अध्ययन के माध्यम से वो मुकाम हासिल करने में असफल होगे जो कि वो श्रद्धा सम्मान का भाव रखते हुए पा सकते थे ॥
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अनुशासन , मान सम्मान श्रद्धा का भाव घर से ही आरम्भ होता है , जो बाहर समाज संसार में सफलता पाने में सहायक होता है ।
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हम सब अभिभावकों की एक बहुत बङी जिम्मेवारी है ये बच्चों और समाज के प्रति
एक पुरानी सी इमारत में वैद्यजी का मकान था। पिछले हिस्से में रहते थे और अगले हिस्से में दवाख़ाना खोल रखा था। उनकी पत्नी की आदत थी कि दवाख़ाना खोलने से पहले उस दिन के लिए आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी। वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान का नाम लेते फिर वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होतीं, उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। वैद्यजी कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे। कोई देता था, कोई नहीं देता था किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे, उसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो। एक दिन वैद्यजी ने दवाख़ाना खोला। गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके पैसे का हिसाब लगाने के लिए आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आँखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए किन्त...
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