Skip to main content

जीत

"युवा समाज सुधारक संघ"
*कछुआ और ख़रगोश की वो कहानी जो आपने नहीं सुनी..*
(अंत तक पढ़ियेगा plz 🙏🏻🌹)
●★◆★◆★◆★◆★◆★●

आपने कछुए और ख़रगोश की कहानी ज़रूर सुनी होगी,
Just to remind you;
short में यहाँ बता देता हूँ:

_एक बार ख़रगोश को अपनी तेज़ चाल पर घमंड हो गया और वो जो मिलता उसे रेस लगाने के लिए challenge करता रहता.._

_कछुए ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली.._

_रेस शुरू हुई, ख़रगोश तेज़ी से भागा और काफी आगे जाने पर पीछे मुड़ कर देखा, कछुआ कहीं आता नज़र नहीं आया.._
_उसने मन ही मन सोचा कछुए को तो यहाँ तक आने में बहुत समय लगेगा, चलो थोड़ी देर आराम कर लेते हैं,_
_और वह एक पेड़ के नीचे लेट गया.._
_लेटे-लेटे  कब उसकी आँख लग गयी पता ही नहीं चला.._

_उधर कछुआ धीरे-धीरे मगर लगातार चलता रहा। बहुत देर बाद जब खरगोश की आँख खुली तो कछुआ फिनिशिंग लाइन तक पहुँचने वाला था.._
_ख़रगोश तेजी से भागा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कछुआ रेस जीत गया.._

*Moral of the story: Slow and steady wins the race..*
*धीमा और लगातार चलने वाला रेस जीतता है..*

ये कहानी तो हम सब जानते हैं, अब आगे की कहानी देखते हैं:

_रेस हारने के बाद खरगोश निराश हो जाता है, वो अपनी हार पर चिंतन करता है और उसे समझ आता है कि वो *over-confident* होने के कारण ये रेस हार गया.._
_उसे अपनी मंज़िल तक पहुँच कर ही रुकना चाहिए था.._

_अगले दिन वो फिर से कछुए को दौड़ की चुनौती देता है.._
_कछुआ पहली रेस जीत कर आत्मविश्वाश से भरा होता है और तुरंत मान जाता है.._

_रेस फ़िर शुरू होती है, इस बार ख़रगोश बिना रुके अंत तक दौड़ता जाता है, और कछुए को एक बहुत बड़े अंतर से हराता है.._

*Moral of the story: Fast and consistent will always beat the slow and steady..*
*तेज और लगातार चलने वाला धीमे और लगातार चलने वाले से हमेशा जीत जाता है..*

*यानि slow and steady होना अच्छा है, लेकिन fast and consistent होना और भी अच्छा है..*

~कहानी अभी बाकी है साहब..~

_इस बार कछुआ कुछ सोच-विचार करता है और उसे ये बात समझ आती है कि जिस तरह से अभी रेस हो रही है वो कभी-भी इसे जीत नहीं सकता.._

_वो एक बार फिर ख़रगोश को एक नयी रेस के लिए चैलेंज करता है, पर इस बार वो रेस का रूट अपने मुताबिक रखने को कहता है.._ _ख़रगोश तैयार हो जाता है.._

_रेस एक बार फ़िर शुरू होती है.._
_ख़रगोश तेज़ी से तय स्थान की और भागता है, पर उस रास्ते में एक तेज धार नदी बह रही होती है, बेचारे ख़रगोश को वहीँ रुकना पड़ता है.._
_कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ वहां पहुँचता है, आराम से नदी पार करता है और लक्ष्य तक पहुँच कर रेस फ़िर जीत जाता है.._

*Moral of the story: Know your core competencies and work accordingly to succeed..*
*पहले अपनी strengths को जानो और उसके मुताबिक काम करो, जीत ज़रुर मिलेगी..*

~कहानी अभी भी बाकी है साहब..~

_इतनी रेस करने के बाद अब कछुआ और ख़रगोश अच्छे दोस्त बन गए थे और एक दुसरे की ताक़त और कमज़ोरी समझने लगे थे.._
_दोनों ने मिलकर विचार किया कि अगर हम एक दुसरे का साथ दें, तो कोई भी रेस आसानी से जीत सकते हैं.._

_इसलिए दोनों ने आख़िरी रेस एक बार फिर से मिलकर दौड़ने का फैसला किया,_
_पर इस बार as a *Competitor* नहीं बल्कि as a *Team* काम करने का निश्चय लिया.._

_दोनों स्टार्टिंग लाइन पे खड़े हो गए.._
_Get set go, और तुरंत ही ख़रगोश ने कछुए को ऊपर उठा लिया और तेज़ी से दौड़ने लगा.._
_दोनों जल्द ही नदी के किनारे पहुँच गए.._
_अब कछुए की बारी थी, कछुए ने ख़रगोश को अपनी पीठ पर बैठाया और दोनों आराम से नदी पार कर गए.._
_अब एक बार फिर ख़रगोश कछुए को उठा फिनिशिंग लाइन की ओर दौड़ पड़ा और दोनों ने साथ मिलकर रिकॉर्ड टाइम में रेस पूरी कर ली.._

_दोनों बहुत ही ख़ुश और संतुष्ट थे, आज से पहले कोई रेस जीत कर उन्हें इतनी ख़ुशी नहीं मिली थी.._

_*Moral of the story: Team Work is always better than individual performance..*_
_*टीम वर्क हमेशा व्यक्तिगत प्रदर्शन से बेहतर होता है..*_

_*Individually चाहे हम जितने भी बड़े Performer हों, लेकिन अकेले दम पर हर मैच नहीं जीता सकते..*_

_*अगर लगातार जीतना है तो हमको टीम में काम करना सीखना  होगा,*_
_*हमको अपनी क़ाबिलियत के आलावा, दूसरों की ताक़त को भी समझना होगा,*_
_*और जब जैसी Situation हो, उसके हिसाब से टीम की Strengths को Best Use करना होगा..*_

★ *फ़िर जीत सुनिश्चित है..* ★

_*{यह कहानी हमारे सारे अपनों, अज़ीज़ों और दोस्तों को समर्पित है, जिनके बिना हमारी कोई भी, छोटी सी छोटी, जीत संभव नहीं हो सकती..*__

🙏🏻😌🇮🇳💝🌹👍🏻👍🏻
Yuva-ss-sangh.blogspot.com

Comments

Popular posts from this blog

वैदिक ज्ञान

*इसे पड़े और सेव कर सुरक्षित कर लेवे। वाट्सअप पर ऐसी पोस्ट बहोत कम ही आती है।👇* विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का अनुसंधान ) ■ क्रति = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग ■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग ■ 2 त्रुति = 1 लव , ■ 1 लव = 1 क्षण ■ 30 क्षण = 1 विपल , ■ 60 विपल = 1 पल ■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) , ■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा ) ■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) , ■ 7 दिवस = 1 सप्ताह ■ 4 सप्ताह = 1 माह , ■ 2 माह = 1 ऋतू ■ 6 ऋतू = 1 वर्ष , ■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी ■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी , ■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग ■ 2 युग = 1 द्वापर युग , ■ 3 युग = 1 त्रैता युग , ■ 4 युग = सतयुग ■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग ■ 76 महायुग = मनवन्तर , ■ 1000 महायुग = 1 कल्प ■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ ) ■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म ) ■ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म ) सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व...

सबकुछ परमात्मा पर छोड़ दो

एक पुरानी सी इमारत में वैद्यजी का मकान था। पिछले हिस्से में रहते थे और अगले हिस्से में दवाख़ाना खोल रखा था। उनकी पत्नी की आदत थी कि दवाख़ाना खोलने से पहले उस दिन के लिए आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी। वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान का नाम लेते फिर वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होतीं, उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। वैद्यजी कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे। कोई देता था, कोई नहीं देता था किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे, उसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो। एक दिन वैद्यजी ने दवाख़ाना खोला। गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके पैसे का हिसाब लगाने के लिए आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आँखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए किन्त...

अंग्रेजी साल बनाम हिन्दू नववर्ष

भारत में कुछ लोग अपना नूतन वर्ष भूल गए हैं और अंग्रेजो का नववर्ष मनाने लगे हैं, उसमें किसी भारतीय की गलती नही है लेकिन भारत में अंग्रेजो ने 190 साल राज किया है और अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति खत्म करके अपनी पश्चिमी संस्कृति थोपनी चाही उसके कारण आज भी कई भारतवासी मानसिकरूप से गुलाम हो गये जिसके कारण वे भारतीय नववर्ष भूल गये और ईसाई अंग्रेजों का नया साल मना रहे हैं । 1 जनवरी आने से पहले ही कुछ नादान भारतवासी नववर्ष की बधाई देने लगते हैं, भारत देश त्यौहारों का देश है, सनातन (हिन्दू) धर्म में लगभग 40 त्यौहार आते हैं यह त्यौहार करीब हर महीने या उससे भी अधिक आते है जिससे  जीवन में हमेशा खुशियां बनी रहती हैं और बड़ी बात है कि हिन्दू त्यौहारों में एक भी ऐसा त्यौहार नही है जिसमें दारू पीना, पशु हत्या करना, मास खाना, पार्टी करने आदि  के नाम पर दुष्कर्म को बढ़ावा मिलता हो । ये सनातन हिन्दू धर्म की महिमा है। भारतीय हर त्यौहार के पीछे कुछ न कुछ वैज्ञानिक तथ्य भी छुपे होते हैं जो जीवन का सर्वांगीण विकास करते हैं हैं । ईसाई धर्म में 1 जनवरी को जो नया वर्ष मनाते है उसमें कुछ तो नयी अनुभूति होनी...