"युवा समाज सुधारक संघ"
माँ बेटे की लड़ाई को आज दो दिन हो गए थे। कहे मुताबिक़ गौरव साहब ने 2 दिन से घर का पानी भी नहीं पिया था। दोपहर में एक बजे उठते नहा धोकर बाहर निकल जाते।
तीसरे दिन उनकी नयी नवेली धर्मपत्नी नंदिनी अपने मायके से पगफेरे की रस्म करके लौटी... माँ ने बेटे का मान रखते हुए बहू को कुछ बताना अच्छा नहीं समझा। पर घर में जो हालात चल रहे थे उन्हें देखकर गूंगा बहरा भी समझ जाए की कहानी क्या है। वो तो तब भी गौराव की पत्नी थी।
खैर सास और पति दोनों का मान रखते हुए उसने किसी से भी कोई भी सवाल करना ज़रूरी नहीं समझा।
तीन चार दिन यूँ ही निकल गए और एक दिन बाहर से आकर नंदिनी को आदेश देते हुए गौरव बोले "फटाफट पैकिंग कर लो हमे कलकत्ते के लिए निकलना है।"
"एकदम से कैसे प्लान बन गया? माँ से पूछ लूँ फिर पैकिंग करती हूँ।" नंदिनी ने कमरे से बाहर निकलते हुए कहा। गौरव ने उसे रास्ते में ही रोक लिया उसका हाथ झिड़क कर बोला "माँ से पूछने की कोई ज़रुरत नहीं है। जब मै उनसे बात नहीं कर रहा तो तुम भी नहीं करोगी। और मै तुम्हारा पति हूँ जितना कह दिया उतना करो बस।"
इतने दिन से इस बदतमीज़ी को चुपचाप देख रही नंदिनी का मौन फूट पड़ा। लगभग चीखते हुए बोली। "पत्नी हूँ आपकी बंदोड़नि नहीं। चार पंचो में ब्याह कर लाये थे मुझे,भगा कर नहीं लाये थे। आप पति हैं आपकी आज्ञा, आपका आदेश सर आँखों पर। मगर वह भी माँ हैं मेरी उनकी मर्ज़ी भी ज़रूरी है मेरे लिए। और वैसे भी आपकी पत्नी बनाने से पहले उन्होंने अपनी बहू चुना था मुझे। और आपको नाराज़गी दिखानी है दिखाइये। माँ हैं आपकी। पर मुझे भी प्यार दिखाना है क्यूँकि मेरी भी माँ हैं।"
आवाज़ और बात इतनी धीमी नहीं थी की गौरव के कानो तक ही सीमित रहती। किचन में काम कर रही माँ ने भी सब सुना...और गहरी सांस ली..."भगवान का शुक्र अदा करते हुए बोली मै तो भूल ही गयी थी जवानी का नशा सिर्फ चढ़ता ही नहीं है
भगवान का शुक्र अदा करते हुए बोली मै तो भूल ही गयी थी जवानी का नशा सिर्फ चढ़ता ही नहीं है,जवानी का नशा जवानी के हाथों ही उतारा जाता है...
✍🏻 कुलदीप
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